अब हींग की खेती बदल देगी किसानों की किस्मत, कुछ ही वक्त में बढ़ जाएगा कई गुना मुनाफा | Asafoetida Farming in India

भारत में प्राचीन समय से ही हींग का उपयोग होता रहा है एक अनुमान के तौर पर पूरे विश्व के लगभग 40% हींग की खपत भारत में ही हो जाती है। लेकिन सबसे आश्चर्य वाली बात है कि भारत इतनी खपत और मसाले वाले देश होने के बाद भी हींग का उत्पादन अपने देश में अधिक मात्रा में नहीं हो पाने की वजह से भारत को हर साल हींग का आयात विदेशों से करना पड़ता है। लेकिन फिर भी हींग की खेती एक प्रोफिटेबल कृषि व्यवसाय होने के नाते भारत में भी प्रमुखता से की जाती है।

हींग  (Asafoetida) एक सुंगंधित पदार्थ है जो खाने के स्वाद में मजेदार बनाने के लिए उपयोग होता है। हींग  पौधे के रूप में उगाया जाता है और उनकी जड़ों से गोंद बाहर निकालकर सुखाया जाता है। हींग का पौधा सौंफ प्रजाति का पौधा होता है जिसकी लंबाई 1 से लगभग 1.5 मीटर तक की होती है।

हींग की खेती के लिए कुछ महत्वपूर्ण तत्व शामिल होते हैं, जैसे कि उचित जमीन का चयन, बीज की गुणवत्ता, समयबद्ध उपजाऊ प्रजाति का चयन, उचित खाद का उपयोग और सम्पूर्ण अवसंरचना का प्रबंधन। हींग  की खेती के लिए अधिकांश जलवायु शुष्क और ठंडी होती होती है, और यह साम्प्रदायिक रूप से राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, और पंजाब जैसे राज्यों में उगाई जाती है।

हींग का इतिहास

“अधिकतर लोगों का ऐसा मानना है कि हींग को भारत में मुगल ईरान से लेकर आए थे। जबकि कुछ लोगों द्वारा यह भी कहा जाता है कि आयुर्वेद में चरक संहिता में हींग का औषधीय इस्तेमाल का जिक्र है| तो इस हिसाब से सीधा सीधा मतलब है कि मुगलों के भारत आने से हजारों साल पहले ही हींग के बारे में भारतीय जानते थे क्योंकि चरक संहिता लगभग 7 वी से आठवीं शताब्दी में ही लिखी गई थी और इसका इस्तेमाल खाने पीने में होता था|

तो, विशेषता उनको यह बात जानने की आवश्यकता है कि भारत पहले एक विशाल भूखंड था जिसे बाद में अलग-अलग देशों में बांटा गया जैसे में आज पाकिस्तान और बांग्लादेश अलग हुए हैं उसी प्रकार प्राचीन समय अफगानिस्तान और ईरान जैसे देश भी भारत का ही हिस्सा थे लेकिन समय के हिसाब से ये अलग-अलग देश बन गए। और जब की सभी भारत का ही हिस्सा थे तो हींग के उपयोग के बारे में भला भारतीय कैसे नहीं जानते?”

कुछ मुख्य हींग निर्यातक देशों में शामिल हैं:

आफ़ग़ानिस्तान- आफ़ग़ानिस्तान हींग का प्रमुख उत्पादक और निर्यातक देश है। यहां पर्याप्त मात्रा में हींग उत्पन्न होती है और यहां से अन्य देशों में निर्यात की जाती है।

इरान-इरान भी हींग का महत्वपूर्ण निर्यातक है। इरानी हींग मशहूर है और विशेष रूप से भारतीय बाजार में मांग है।

उज़्बेकिस्तान-उज़्बेकिस्तान भी हींग के निर्यातक देशों में से एक है। यहां पर्याप्त मात्रा में हींग उत्पन्न होती है और यह विभिन्न देशों में निर्यात की जाती है।

इनमें से कुछ अन्य देशों में भी हींग का उत्पादन और निर्यात होता है, लेकिन भारत इसका प्रमुख निर्यातक देश है। भारत मे मुख्यत जम्मू कश्मीर, हिमांचल प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों में हींग की खेती होती है|

हींग (Asafoetida) की खेती कैसे करें

हींग (Asafoetida) की खेती करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन कर सकते हैं:

जलवायु

हींग की खेती के लिए लगभग 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। इनके पौधों को तेज धूप में रखने की आवश्यकता नहीं होती है सिनेमा मूली धूप में ही वह छायादार जगह पर रखकर अधिक अच्छे से तैयार किया जा सकता है। अधिक तेज धूप में यह पेड़ नष्ट हो सकते हैं।

बीजों की खरीद

अच्छी गुणवत्ता वाले हींग के बीजों की खरीद करें। आप मौसम के हिसाब से बीजों का चयन कर सकते हैं, जिसमें प्रमुख बीज उत्पादकों से सलाह लें।

माटी का चयन

हींग की खेती के लिए, अच्छी और उर्वरित माटी का चयन करें। माटी को रेतीली और आपातित न करें, क्योंकि हींग अच्छी उत्पादनता के लिए उचित माटी की आवश्यकता होती है।

खेत की तैयारी

खेत को तैयार करने के लिए, आपको उपयुक्त खेती उपकरणों का उपयोग करके मिट्टी को मुल्चित करना होगा। इसके लिए आप उपयुक्त खेती यंत्रों का उपयोग कर सकते हैं जैसे कि ट्रैक्टर, हर्वेस्टर आदि।

रोपण

हींग की खेती के लिए मार्च-अप्रैल या सितंबर-अक्टूबर महीनों में रोपण करें। बीजों को मेंहदी या खाद के साथ मिश्रित मिट्टी में बोएं।

सिंचाई

रोपण के बाद, पानी का अच्छा प्रवाह सुनिश्चित करें ताकि पौधे सही ढंग से उग सकें। हींग को नियमित रूप से सिंचाई की आवश्यकता होती है। हींग पौधों के लिए प्रमुख महत्वपूर्ण कार्य सिंचाई है। हींग को नियमित रूप से सिंचना चाहिए, इसमें मौसम की स्थिति के अनुसार विशेषताएं जैसे कि बारिश, जल स्रोत आदि का भी ध्यान रखना चाहिए।

रखरखाव और रोगों का नियंत्रण

पौधों को स्वस्थ रखने के लिए उनकी वातावरण सुरक्षा करें और विषाणुरोधी दवाओं का प्रयोग करें। जबकि हींग में प्रमुख रोग और कीट हानिकारक नहीं होते हैं, लेकिन फिर भी पौधों को नियमित रूप से जांचना आवश्यक होता है।

हींग के पेड़ से गोंद निकालने का तरीका

हींग के पौधों में उनके जड़ों में कट करने से निकले हुए रसों को तैयार करने से हींग बनता है। इन रसों को निकाल लेने के बाद हींग बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है। इन पौधों से निकले हुए रस के गोंदो में मैदा या चावल का आटा मिलाकर उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित किया जाता है और इस प्रकार से हींग बनता है।

हींग की खेती में लागत और मुनाफा

हींग की खेती में लागत और मुनाफा विभिन्न कारकों पर निर्भर करेगा, जैसे कि उगाने के क्षेत्र, बीज कीमत, सिंचाई की व्यवस्था, खरपतवारों का प्रबंधन, उपजाऊ क्षेत्र की मात्रा आदि। हींग की खेती विभिन्न भूमिगत और जलीय संकेतों पर आधारित होती है, इसलिए विभिन्न क्षेत्रों में लागत और मुनाफा अलग-अलग हो सकता है। 

लागत की बात करें तो

  • खेत की भूमि किराया या मालिकाना
  • बीज की खरीद
  • रोपण का काम
  • सिंचाई व्यवस्था (जल स्रोत, पंप, सिंचाई की खर्च)
  • खाद की खरीद और उपयोग
  • हरा-भरा पदार्थ का उपयोग (खरपतवारों के खिलाफ मुकाबला करने के लिए)
  • ​पशुओं के खिलाफ सुरक्षा उपकरणों की खरीद

इन सभी खर्चों को मिलाकर ही खेती में प्रति हेक्टेयर लगभग ₹3,00,000 तक की लागत आती है।

मुनाफे की बात करें तो

  • उचित कीमत पर हींग बेचने से आय प्राप्ति
  • मार्केट में बढ़ती मांग के कारण बढ़ती आय
  • सुषम खेती प्रथाओं द्वारा उत्पादन में कटौती की कमी से आय का वृद्धि
  • कम रोग और कीटों के प्रभाव से बचत करने से आय का बढ़ना
  • उचित खेती तकनीकों के उपयोग से उत्पादन में वृद्धि

एक हेक्टेयर मैं खेती करने पर इसी लागत में पांचवें साल की खेती में लगभग 1000000 रुपए तक का फायदा मिलता है। आपको बता दें कि बाजार में 1 किलो हींग लगभग 35,000 से ₹40,000 प्रति किलो बिकता है।

हींग की खेती के लागत और मुनाफे को अंकित करने के लिए अधिकतम जानकारी आपके स्थानीय क्षेत्र में हींग की खेती करने वाले किसानो को होगी।

तो दोस्तों हमें आशा है कि हमारे द्वारा दी गयी हींग के खेती में उपयोग होने वाली वह सभी जानकारियां हमने आपको अपने इस लेख में बतायी है जिसे जानना आपके लिए बेहद ही आवश्यक था। और आप भी हींग की खेती करने में हमारे इस लेख द्वारा जरूर लाभान्वित हो पाएंगे।

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