चाय की खेती कैसे करें? | How to do Tea Cultivation? | Chai ki Kheti Kaise Kare?
भारत में चाय की खेती अंग्रेजों द्वारा असम के बागों में सन 1835 में सबसे पहले शुरू की गई थी। और आज के समय में भारत में ऐसे कई राज्य हैं जहां पर चाय की खेती (Chai Ki Kheti) की जाती है। लेकिन पहले के समय में भारत में चाय की खेती केवल पहाड़ी क्षेत्रों में ही की जाती थी। लेकिन अब यह मैदानी क्षेत्रों में भी की जाती है। भारत का विश्व में चाय उत्पादन में दूसरा स्थान है दुनिया भर में लगभग 27% चाय अकेले भारत में ही उगाया जाता है। भारत में चाय की खपत लगभग 11% तक हो जाती है बाकी के चाय का निर्यात विदेशों में किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि चाय की खेती (Chai Ki Kheti) किस प्रकार से की जाती है तो हम आपको अपने पोस्ट में विस्तृत रूप से यही बताने वाले हैं।
चाय की खेती के लिए उपयुक्त तापमान और जलवायु | Suitable Temperature and Climate for Tea Cultivation/ Farming | Chai Ki Kheti ke Liye Tapman
चाय की खेती के लिए सबसे अच्छा उष्णकटिबंधीय जलवायु को माना जाता है जिसमें गर्मी के साथ ही साथ बारिश की भी संभावनाएं बनी रहती है। आपको बता दें कि नमी और गर्म जलवायु में चाय के पौधे बहुत ही अच्छी मात्रा में विकसित होते हैं तथा छायादार जगह पर भी इनके पौधों को आसानी से विकास करने में सहायता मिलती है।
इनके पौधों को सामान्यतः 20 डिग्री से 30 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान की जरूरत होती है। चाय की खेती में कम से कम 15 डिग्री तथा अधिकतम 45 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान होना चाहिए।
चाय की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी | Soil for Tea Cultivation/ Farming | Chai Ki Kheti ke Liye Acchi Mitti
चाय की खेती के लिए सबसे अच्छी पहाड़ी क्षेत्रों की मिट्टी मानी जाती है तथा सामान्य जगहों पर भी अगर इसकी खेती करते हैं तो उस मिट्टी का पीएच मान 5.4 से 6 के बीच में होना चाहिए। ध्यान दीजिए इस खेती के लिए उचित जल निकासी की जगह होनी चाहिए जलभराव इसके लिए बेहद हानिकारक होता है।
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चाय की अच्छी किस्मे | Good Varieties of Tea
चाय एक प्रमुख पेय पदार्थ है और उसकी विभिन्न उन्नत किस्में मौजूद हैं जो विभिन्न भूमियों, मौसम और चाय उत्पादन के आवश्यकताओं के अनुसार सामर्थ्यपूर्ण होती हैं। यहां कुछ उन्नत चाय की किस्में हैं:
असम की उन्नत किस्में- उबेक 1, उबेक 2, डीकॉला 1, डीकॉला 2, सुपरमेन, नागीनी, अग्नि, भूपेश्वर, बनशी, काजाल, बलदेवी, श्रीशक्ति, अमिया आदि।
दूर्ग जिले की उन्नत किस्में- धूप ताज, प्रशांत, स्वर्ण चामेली, दिव्य धरा, मनोज प्रिया, सौम्या, श्रीलता, धूप पाराग, किरण रंग, अभीर आदि।
दार्जिलिंग की उन्नत किस्में- अमिरतारी, टिक्करा, बेयुल, आर्य, गंगापूर, बीजली, डार्जीलिंग क्लोन 13, मोहनबागान, तुकडी बागान, सूर्य खान आदि।
नीलगिरी की उन्नत किस्में- कांस्टेंटीन, गोल्डन नीलगिरी, नूवारी, सिल्वर टाईप, चेन्नापाटन, कुञ्चन, आविनाश, गूडनादि आदि।
चाय के प्रकार | Types of Tea
चाय विश्वभर में लोकप्रिय होने के कारण, अनेक प्रकार की चाय मौजूद हैं। नीचे कुछ प्रमुख चाय के प्रकार दिए गए है-
चाय (Black Tea)– सामान्यतः चाय ब्लैक टी के रूप में जानी जाती है। इसे काली पत्ती वाली चाय भी कहा जाता है। यह चाय की पत्तियों को फेरमेंट करके बनाई जाती है और उसके बाद सुखा दी जाती है।
हरी चाय (Green Tea)- हरी चाय चाय की पत्तियों को ताजगी से पकाकर बनाई जाती है, जिसके कारण वह हरी या गाढ़ी होती है। इसमें कोई फेरमेंटेशन की प्रक्रिया नहीं होती है, इसलिए यह अधिक आंशिक ऑक्सीडेशन से मुक्त होती है और ज्यादा गुणकारी विशेषताओं के साथ आती है।
ओलोंग (Oolong Tea)- ओलोंग चाय ब्लैक चाय और हरी चाय के बीच एक मध्यम रूप होती है। इसे संक्रमण और फेरमेंटेशन की एक मध्यम आवधि में पकाया जाता है। यह एक उच्च-गुणवत्ता वाली चाय होती है जिसे धीमी आग पर वॉक रखकर बनाया जाता है।
दर्जीलिंग (Darjeeling Tea)- दर्जीलिंग चाय भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के दर्जीलिंग जिले में उत्पादित होती है। इसे “चाय का शहँशाह” कहा जाता है और यह अपने उन्नत फ्लेवर और गंध के लिए प्रसिद्ध है।
असाम (Assam Tea)- असाम चाय भारत के असाम राज्य में उत्पादित होती है। इसे बादल, मैल और मजबूत फ्लेवर के लिए जाना जाता है। यह चाय गहरे सुरमे रंग और मजबूत माल्टी फ्लेवर के लिए प्रसिद्ध है।
नीलगिरी (Nilgiri Tea)- नीलगिरी चाय भारत के तमिलनाडु राज्य में आनंद, कान्याकुमारी और नीलगिरी पहाड़ियों में उत्पादित होती है। इसकी खासियत हल्के और फलदार फ्लेवर में होती है।
यह केवल कुछ प्रमुख चाय के प्रकार हैं और वास्तविकता में और भी कई प्रकार की चाय मौजूद हैं। प्रत्येक प्रकार की चाय में अपनी विशेषताएं होती हैं और उन्हें स्वाद के आधार पर चुना जाता है।
चाय के खेत को तैयार करें व खाद | Prepare and Fertilize the Tea Field
आपको बता दें कि चाय के पौधे एक बार रोप देने के बाद यह कई सालों तक उत्पादित होते हैं इसीलिए इनके खेतों को अच्छे से तैयार करना चाहिए। चाय की खेती अधिकतम पर्वतीय क्षेत्रों में ही की जाती है क्योंकि इसकी भूमि ढलान वाली होती है। इस भूमि में आपको एक पंक्ति में 2 से 3 फीट की दूरी बनाकर खड्डे तैयार करने हैं तथा ध्यान दें कि एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति के बीच में भी कम से कम डेढ़ मीटर की दूरी होनी चाहिए।
अभी खंडों में लगभग 15 केजी पुरानी गोबर की खाद को डालना चाहिए तथा रासायनिक खाद में 80 से 90 किलो नाइट्रोजन 90 किलो सुपर फास्फेट और 90 किलो पोटाश की मात्रा को मिट्टी में मिला कर प्रति हेक्टेयर तैयार खंडों में भर देना चाहिए जिससे कि यह खड्डे 1 महीने पहले से ही तैयार हो जाते हैं जिसके बाद इन खंडों में पौधों के रोपाई की जाती है।
आपको बता दें कि चाय की खेती कई वर्षों तक चलती है इसकी वजह से एक बार चाय की कटाई हो जाने के बाद साल में दो से तीन बार रासायनिक खाद देने की प्रक्रिया आपको करनी चाहिए।
चाय के पौधों को कब और कैसे रोपे | When and How to Plant Tea Plants?
चाय के पौधों को रोकने के लिए कलम आकार द्वारा इसकी पौधों को तैयार कर लेना चाहिए इसके बाद तैयार किए गए गड्ढों में इन्हें रोक देना चाहिए और ऊपर से मिट्टी लगा देनी चाहिए। आपको बता दें कि इसकी पौधों को बारिश के बाद रोकना चाहिए जिसके लिए अक्टूबर और नवंबर का महीना सबसे अच्छा होता है क्योंकि इसमें चाय के पौधे अधिक विकास करते हैं।
चाय के पौधो की सिंचाई | Irrigation of Tea Plants
चाय के पौधों को बहुत ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता होती है इसलिए ध्यान दें कि अगर बारिश का मौसम भी है तब भी इसमें पर्याप्त मात्रा में सिंचाई करनी चाहिए तथा अगर सूखे का मौसम है तो फव्वारे विधि द्वारा इसके खेतों की सिंचाई करनी चाहिए। चाय के पौधों को हर दिन हल्के-फुल्के पानी की आवश्यकता होती ही है।
चाय के पौधों का रख रखाव | Maintenance of Tea Plants
चाय के पौधों का रखरखाव करना बेहद ही आवश्यक का होता है इसीलिए आप को ध्यान देना चाहिए कि इनके पौधों में किसी भी प्रकार के रोग न लग पाये तथा इनके खेतों में कूड़े करकट इकट्ठा ना हो पाए। इसीलिए इन खेतों को कूड़े करकट मुक्त रखना चाहिए। जिससे कि चाय के पौधे अधिक विकसित हो पाए।
चाय के पत्तियों की तुड़ाई और पैदावार
चाय की पत्तियों की तोड़ाई साल में तीन बार की जाती है। इन पत्तियों की तोड़ाई के लिए वर्ष में 1 मार्च महीना सबसे अच्छा होता है जिसके बाद हर 3 महीने के अंतराल पर इनकी कटाई या तोड़ाई कर सकते हैं।
चाय की अच्छी किस्म कि अगर हम बात करें तो प्रति हेक्टेयर 700 से 800 किलोग्राम का उत्पादन आपको प्राप्त होता है। आज चाय का बाजारी भाव ही काफी अच्छा होता है जिससे कि किसान भाई लोग ताल में 2 से 2.5 लाख रुपए चाय से आसानी से कमा लेते हैं।
तो दोस्तों हमें आशा है कि आप को चाय की खेती से संबंधित सभी जानकारियां हमारे इस पोस्ट में मीली है जिन्हें आप जानना चाहते हैं।